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मातम ही मातम

मातम ही मातम 
                था 
           हर दजे घर में
          जख्म ही जख्म
          सुनाई दी चीखें 
लहूलुहान सीना सड़कों का
      उजड़ा रे मेरा अंगना
खो गई नन्ही  किलकारियां
बीरान  हुई दिल की गलियाँ
           टूटे सपने
भर गई आंखों में चिंगारियां
           गोद सूनी
    सुनाऊं किसे  लोरियां
 नालायक कमजोर सिस्टम
   लग रहे आरोप प्रत्यारोप
        सोशल मीडिया
   टीवी अखबारों में भारी
    दया धर्म रखे ताक पर
   माया जीवन पर पड़े भारी
         राजधानी के
गीता संजय चोपड़ा का केस
 आज भी आत्मा पर भारी
मार डाली कांगड़ा की बेटी
      जो थी हमें प्यारी
क्या कर रहे बुद्धिजीवी नेताओ
    पड़ी क्यों नींद गाढ़ी 
मिलेगा न्याय मारा मुसीबत का
         खुशफहमी  में
    सिस्टम कानून नेता
       दर तेरे आ गया
गले लगाया प्यार से तूने
कैसे सहता तासीर जख्मों की
     तर लिवास कर डाले
         नमक  से तूने
      गले लगूं किसके
छोड़ दिया सब ने अकेला
           सोचता  हूँ
        मां की कोख
 जिंदा हैवानों से डरती है
   पैदा करूं बेटी क्यों
 इस सिस्टम से सवाल करती है
     क्या होगा समाज का
           कैसे होगा
   रिश्ता तेरे राजकुमार का
             हो चुका
   इंसानी दिल  पाषाण का         .
         जख्म ही जख्म
         सुनाई दी चीखें
 लहूलुहान सीना सड़कों का
     उजड़ा  रे मेरा अंगना
      उजड़ा  रे मेरे अंगना

 मौलिक रचना
उदयवीर भारद्वाज
भारद्वाज भवन
मंदिर मार्ग कांगड़ा
 हिमाचल प्रदेश 176001
मोबाइल 94181 87726

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7 Comments

बहुत ही मार्मिक और ज्वलंत चित्रण

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Punam verma

12-Jul-2023 04:55 PM

Very nice

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👏👏👌👌

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